दहेज एक अभिशाप" बेटी किसी गरीब की घर में उदास है, इक जिंदगी टूटी हुई बस आस-पास है

 

“दहेज एक अभिशाप” बेटी किसी गरीब की घर में उदास है, इक जिंदगी टूटी हुई बस आस-पास है

पूर्वांचल बुलेटिन निष्पक्ष खबर अब तक 

अर्जुन जायसवाल की रिर्पोट 

पुरंदरपुर महराजगंज 

संतकबीर नगर जनपद के मेंहदावल ब्लॉक के ग्राम सभा परसा पांडेय की रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता व अखिल भारतीय लेखन प्रतियोगिता एवं जिला स्तरीय कवि सम्मेलन की विजेता कवयित्री अन्नया राय पाराशर ने एंथोलॉजी को सह-लेखक किया है। जिसका नाम अतीत की गूँज, शपथ शब्द, विरागो योद्धा, और शरद ऋतु, डायरी है। इन्होंने अकादमिक और कैरियर के साथ ञन्सिटी (Gyncity) लैब और अनुसंधान केंद्र में एक वरिष्ठ शोधकर्ता के रूप में काम किया हैं। अन्नया राय पाराशर सर्वश्रेष्ठ रत्नों के साथ “नन्ही पहल” नामक एक पहल शुरू की जिसमे गरीब बच्चों को शिक्षित करने और उन्हें बुनियादी शिक्षा प्रदान करना महिलाओं के कल्याण और महिला सशक्तिकरण में एक सामाजिक कार्यकर्ता अन्नया राय पाराशर ने बड़ा योगदान दिया है।

हमारे देश में दहेज प्रथा एक ऐसा सामाजिक अभिशाप है जो महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों, चाहे वे मानसिक हों या फिर शारीरिक, को बढावा देता है. इस व्यवस्था ने समाज के सभी वर्गों को अपनी चपेट में ले लिया है. अमीर और संपन्न परिवार जिस प्रथा का अनुसरण अपनी सामाजिक और पारिवारिक प्रतिष्ठा दिखाने के लिए करते हैं वहीं निर्धन अभिभावकों के लिए बेटी के विवाह में दहेज देना उनके लिए विवशता बन जाता है. क्योंकि वे जानते हैं कि अगर दहेज ना दिया गया तो यह उनके मान-सम्मान को तो समाप्त करेगा ही साथ ही बेटी को बिना दहेज के विदा किया तो ससुराल में उसका जीना तक दूभर बन जाएगा. संपन्न परिवार बेटी के विवाह में किए गए व्यय को अपने लिए एक निवेश मानते हैं. उन्हें लगता है कि बहूमूल्य उपहारों के साथ बेटी को विदा करेंगे तो यह सीधा उनकी अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाएगा. इसके अलावा उनकी बेटी को भी ससुराल में सम्मान और प्रेम मिलेगा।

इसी दहेज के अत्याचार से परेशान होकर इक बेटी का पत्र उसके पिता के नाम :-

कहती है रो रोकर वो नन्हीं कली

रोना, मचलना ज़िद करना,

बाबा!! 

मैं तो हूँ अब भूल चुकी।

माँ देख आँखों में आँसू मेरे

दुलारती थी मुझको जैसे।।

वो तो कहती भी नहीं 

बहु ये आँसू कैसे???

बाबा!!

है नहीं उन्हें तनिक फ़ुरसत 

पसारे जो प्यार का आँचल

बिसारने को फेहरिश्त

बाबा!!

 तुम तो कहते थे सास भी

 माँ जैसी होती है।

फिर समझती क्यों नहीं वेदना वो

मेरे अंतर्मन की।।

क्यो बोलती है वो कटु वचन 

जो सायक सी है मुझको चुभती।।

बाबा!!

अब तो भूल गयी हूँ मैं जीना

खुशियाँ भी होकर रुष्ठ चली।।

अब तो कोयले सी हो गयी है जिंदगी मेरी

डसती अमावस सी निशाचरी।।

बाबा!!

मैं हूँ थकी खड़ी इस शरीर और इस मन से भी।

बाबा जिसको तुम कहते थे लक्ष्मी

हैं उसको कहते ये अभागिनी।।

बाबा!!

क्यों नहीं दिखते उनको ये चोट मेरे।

जब पकड़ कलाई खींचते चहुँ ओर मुझे।। 

बाबा!!

है नहीं जरा इंसानियत इनमें

दौलत के भूखे सारे हैं।

कुत्ते के आगे गोश्त वाले 

इनपर फबते किस्से सारे हैं।।

बाबा!!

चिंतित मत होना बोझ बन कंधे पर वापस अब न आऊँगी।

लाख करें ये बदसलुकियाँ मुझसे 

डोली चढ़ आई थी अर्थी पर ही जाऊँगी।।

दहेज प्रथा हमारे समाज का कोढ है । यह प्रथा साबित करती है कि हमें अपने को सभ्य मनुष्य कहलाने का कोई अधिकार नहीं है । जिस समाज में दुल्हनों को प्यार की जगह यातना दी जाती है, वह समाज निश्चित रूप से सभ्यों का नहीं, नितान्त असभ्यों का समाज है । अब समय आ गया है कि हम इस कुरीति को समूल उखाड़ फेंके ।

Leave a Comment

[democracy id="1"]

बृजमनगंज नगर पंचायत में बने पार्क में बन रहा कचड़ा का हब,विमारी फैलाने का दे रहे जिम्मेदार दावत-सोशल मीडिया पर भाजपा नेता नन्हे सिंह का वीडियो वायरल-देखे भाजपा नेता ने क्या कहा?https://youtu.be/qau-xWqFzcc?feature=shared

बृजमनगंज नगर पंचायत में बने पार्क में बन रहा कचड़ा का हब,विमारी फैलाने का दे रहे जिम्मेदार दावत-सोशल मीडिया पर भाजपा नेता नन्हे सिंह का वीडियो वायरल-देखे भाजपा नेता ने क्या कहा?https://youtu.be/qau-xWqFzcc?feature=shared