*प्रभुदयाल विद्यार्थी को पुत्र जैसा मानते थे गांधी जी*
सिद्धार्थनगर । प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. प्रभूदयाल विद्यार्थी उर्फ प्रभू को महात्मा गांधी अपने पुत्र की तरह मानते थे। स्वर्गीय प्रभू दयाल विद्यार्थी का जन्म सन 1925 में सिद्धार्थ नगर जिले के जोगिया गांव में एक गरीब निषाद परिवार में हुआ था, जिसके पास न घर था, न कोई खेती। पिता एवं भाई मजदूरी करके जीवन यापन करते थे। परिवार में शिक्षा का दूर-दूर तक नाम निशान नहीं था। पता नहीं कैसे बालक प्रभु को पढ़ने का नशा लग गया और उन्होंने जोगिया के प्राइमरी पाठशाला में नाम लिखाया और स्कूल जाने लगे।
बच्चे उन दिनों अपने अध्यापक के लिए अपने-अपने घरों से फल, सब्जी एवं खाने-पीने की चीज लाते थे, लेकिन प्रभू कभी कुछ नहीं लेकर जाते थे। एक दिन मास्टर ने प्रभू दयाल विद्यार्थी से कहा कि प्रभू तुम मेरे लिए कुछ क्यों नहीं लाते, प्रभू ने जवाब दिया मेरे रे पास खेत और पेड नहीं है इनहीं है, मैं कहां से लाऊंगा। मास्टर ने कहा दूसरे के खेत और पेड़ से लाओ। लेकिन उस बालक ने मना कर दिया था। बालक प्रभू की अपने अध्यापक से सत्य की यह लड़ाई चर्चा का विषय बन गई।
उन दिनों महात्मा गांधी की आजादी की लड़ाई, सत्य अहिंसा की लड़ाई जोरों पर थी। बापू के विचारों का प्रचार प्रसार करने हेतु ठक्कर बापा उसका बाजार में आए हुए थे।
उन्होंने ही प्रभू को गांधी जी से मिलवाया था। उसका बाजार से गोरखपुर पहुंचकर ठक्कर बापा ट्रेन से नीचे उतरे, लेकिन यह क्या, उनके साथ ही बालक प्रभू भी उतरकर उनके बगल में खड़ा हो गया। ठक्कर बापा ने आश्चर्य से कहा, यह क्या
तुम क्यों चले आए। बालक प्रभू ने उत्तर दिया कि आपने ही तो कहा था, गांधी जी के पास चलने के लिए। इधर प्रभू के घर पर सबने सोचा बालक लगता है, डूबकर मर गया। खोजबीन करने के बाद यह मानकर लोगों ने संतोष कर लिया। गांधी जी बालक प्रभु की सच्चाई एवं ईमानदारी से बहुत प्रभावित हुए। खुश होते हुए बोले अब यह मेरा विद्यार्थी है, इसे मैं पढ़ाआा, फिर कस्तूरबा को आवाज लगाया कस्तूरबा कस्तूरबा जल्दी
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आओ, देखो तुम्हारा छठां बेटा आ गया। कस्तूरबा ने आकर बालक के बारे में पूरी बात सुनी और खुश होकर बालक के सिर पर हाथ फेरा, जैसे स्वीकारा हो, हाँ यह मेरा छठा बेटा है। गांधी जी ने कहा कि अब से यह प्रभू नहीं प्रभू दयाल विद्यार्थी कहलाएगा। महात्मा गांधी जी के आश्रम में स्व विद्यार्थी ने शिक्षा ग्रहण की। वहीं उन्होंने विरासत एवं साहित्य रत्न की डिग्री प्राप्त की, दर्जनों किताबें लिखी, जिनमें सेवाग्राम, देवदूत गांधी, बालकों में गांधी जी, बापू के महादेव एवं सीएफ एंडुज आदि किताबें प्रमुख है। आजादी की लड़ाई में जेल गये और गांधी जी के शहादत के बाद अपने गांव वापस आये। इनका विवाह 10 जुलाई 1956 को कमला साहनी के साथ हुआ। 1952 के विधानसभा के पहले चुनाव में जवाहर लाल भुरमात नेहरू ने विद्यार्थी जी को बुलवाया और विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए कहा।
विद्यार्थी जी ने जवाब दिया कि बापू ने कोई पद नहीं लिया, मुझे भी कोई पद नहीं चाहिए। यह कहकर वह अपने गांव वापस चले थे। जवाहर लाल नेहरू ने कुछ दिनों बाद विद्यार्थी की पुनः बुलवाया और उनसे बोले कि हम आप देश नही चलाएंगे, तो कौन चलाएगा। यह सुनकर विद्यार्थी जी निरूत्तर हो गये और चुनाव लड़ना स्वीकार कर लिये। सन् 1952 से लेकर 1977 तक विद्यार्थी जी उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने जाते रहे। केवल एक बार 1962 में वे चुनाव हारे थे। इस तरह प्रभूदयाल विद्यार्थी गांधी जी के 6 वें पुत्र कहलाए।
जिला संवाददाता- मोहम्मद अयूब सिद्धार्थनगर।