मिठवल क्षेत्र के इमिलिया गाँव में हो रही प्राकृतिक
खेती

*मिठवल क्षेत्र के इमिलिया गाँव में हो रही प्राकृतिक
खेती*
बांसी।मिठवल विकास क्षेत्र के इमिलिया गाँव निवासी राजकुमार धर ने खरीफ फसल अंतर्गत अपने दो एकड खेत में धान की प्राकृतिक खेती की शुरुआत किया है।धान की पांच एकड खेत में उन्होंने जैविक खादों का ही प्रयोग किया है।
      उक्त जानकारी देते हुए राजकुमार ने कहा कि कृषि विभाग की पहल पर उन्हें कृषि विज्ञान केन्द्र सोहना पर वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 ओमप्रकाश के निर्देशन में वैज्ञानिक डा0 प्रवेश कुमार द्वारा प्राकृतिक खेती करने का छह दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया। दिशा संस्था के कार्यकर्ता अर्जुन कुमार के सहयोग से धान की नर्सरी डालते समय बीज शोधन हेतु 5 किग्रा.गोबर, 5 लीटर गौ-मूत्र, 50 ग्राम चूना, 100 ग्राम (एक मुट्ठी) जीवाणुयुक्त मिट्टी तथा 20 लीटर पानी से बीजामृत तैयार कर बीज शोधन किया।उन्होंने बीजामृत तैयार करने की विधि बताते हुए कहा कि एकत्रित उपरोक्त सभी सामग्री को मिलाकर 24 घण्टे रखें। दिन में दो बार लकड़ी के डण्डे से घोलें तैयार घोल 100 किग्रा 0 बीज शोधन के लिए पर्याप्त होता है।उन्होंने बताया कि इस प्रकार उपचारित तथा छांव में सुखाया बीज को नर्सरी के लिए तैयार खेत में बुवाई कर दें। रविवार के दिन राजकुमार प्राकृतिक विधि से हो रही धान की खेती के लिए बीजामृत तैयार करने में व्यस्त रहे। उनके द्वारा बताया गया कि वह इससे पूर्व अपनी फसल में बीजामृत का चार छिडकाव कर चुके हैं। दिशा संस्था के किसान सहायक अर्जुन कुमार ने मृदा स्वास्थ्य एवं पोषक तत्व प्रबंधन के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि कृषि वैज्ञानिक द्वारा सुझाए गए विधि के अनुसार जीवामृत सूक्ष्मजीवों का घोल है जो पेंड़ पौधों के लिए कच्चे पोषक तत्वों को पकाकर पौधों के लिए भोजन तैयार करते हैं।


उन्होंने मौजूद किसानों से कहा कि पौधों पर छिडकाव हेतु जीवामृत बनाने की विधि थोड़ी कठिन है इसके लिए 10 लीटर गौमूत्र, 10 किग्रा. गोबर, 2 किग्रा. गुड़, 2 किग्रा. बेसन तथा बरगद, पीपल, पाकड़ जैसे वृक्ष के नीचे की मिट्टी की आवश्यकता होती है।200 ली० पानी से भरे प्लास्टिक ड्रम में इन सबको मिलाकर जूट की बोरी से ढक कर ड्रम को छाया में रखना होता है। सुबह-शाम लकड़ी के डण्डे से घड़ी की सुई की दिशा में घोलें। 2 से 3 दिन बाद छानकर सात दिन के अन्दर प्रयोग करें। जीवामृत प्रयोग की विधि समझाते हुए उन्होंने बताया कि एक एकड़ खेत में 200 लीटर जीवामृत को पानी के साथ टपक विधि से या धीरे-धीरे वहा दें। छिड़काव विधि से पहला छिड़काव बुवाई के1 माह बाद 1 एकड़ मे 100 ली० पानी 5 ली० जीवामृत मिलकार दें। दूसर छिड़काव 21 दिन बाद 1 एकड़ में 150 ली. पानी व 10 ली० जीवामृत मिलाकर दें। तीसरा व चौथा छिकाव 21-21 दिन बाद 1 एकड़ में 200 ली० पानी में 20 ली० जीवामृत मिलाकर दें। आखिरी छिड़काव दाने के दूध की अवस्था में प्रति एकड़ में 200 ली० पानी 5-10 ली० खट्टी छांछ (मट्ठा) मिलाकर छिड़काव करने का उन्होंने सुझाव दिया। इस दौरान ठाकुर प्रसाद, त्रिलोकी नाथ, अजय विक्रम प्रताप नरायण, सतीश द्विवेदी,दिवाकर धर आदि भी मौजूद रहे।

जिला संवाददाता-‌ मोहम्मद अयूब सिद्धार्थनगर।

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