हनुमानगढ़ी मन्दिर में श्रीमद्भागवत कथा

*हनुमानगढ़ी मन्दिर में श्रीमद्भागवत कथा*

सिद्धार्थनगर। जो हमे गोविन्द से जोड़ दे वही गुरू है। हमारे पास यदि ऐसे गुरू हैं तो हमे किसी बात की चिंता नहीं करनी चाहिए।
            हनुमान गढ़ी मंदिर परिसर अनूप नगर तेतरी बाजार सिद्धार्थनगर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन उक्त बातें आचार्य संतोष शुक्ल जी महाराज ने कही। उन्होंने सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष आदि प्रसंगों का सुंदर वर्णन किया। सुदामा जी जितेंद्रिय एवं भगवान कृष्ण के परम मित्र थे। भिक्षा मांगकर अपने परिवार का पालन पोषण करते । गरीबी के बावजूद भी हमेशा भगवान के ध्यान में मग्न रहते। पत्नी सुशीला सुदामा जी से बार बार आग्रह करती कि आपके मित्र तो द्वारकाधीश हैं उनसे जाकर मिलो शायद वह हमारी मदद कर दें। सुदामा पत्नी के कहने पर द्वारका पहुंचते हैं और जब द्वारपाल भगवान कृष्ण को बताते हैं कि सुदामा नाम का ब्राम्हण आया है।

कृष्ण यह सुनकर नंगे पैर दौङकर आते हैं और अपने मित्र को गले से लगा लेते । उनकी दीन दशा देखकर कृष्ण के आंखों से अश्रुओं की धारा प्रवाहित होने लगती है। सिंघासन पर बैठाकर कृष्ण जी सुदामा के चरण धोते हैं। सभी पटरानियां सुदामा जी से आशीर्वाद लेती हैं। सुदामा जी विदा लेकर अपने स्थान लौटते हैं तो भगवान कृष्ण की कृपा से अपने यहां महल बना पाते हैं

लेकिन सुदामा जी अपनी फूंस की बनी कुटिया में रहकर भगवान का सुमिरन करते हैं। अगले प्रसंग में शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई जिससे उनके मन से मृत्यु का भय निकल गया। तक्षक नाग आता है और राजा परीक्षित को डस लेता है। राजा परीक्षित कथा श्रवण करने के कारण भगवान के परमधाम को पहुंचते है। इस दौरान भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।



जिला संवाददाता-‌ मोहम्मद अयूब सिद्धार्थनगर।

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