*रमजान त्याग,सब्र,शांति,आपसी भाईचारे का पैगाम देता है-मिन्नत गोरखपुरी*
गोरखपुर शहर के युवा कवि शायर साहित्यकार लेखक मंच संचालक एवं समाजसेवी इंजीनियर मिन्नत गोरखपुर ने रमजान का पवित्र माह शुरू होने से पूर्व रमजान के ऊपर एक विस्तृत लेख लिखा।साथ ही साथ ही कहा कि रमजान शांति,आपसी भाईचारे का पैगाम देता है
रमज़ान या रमदान (उर्दू – अरबी – फ़ारसी : رمضان) इस्लामी पंचांग का नौवाँ महीना है। मुस्लिम समुदाय इस महीने को परम पवित्र मानता है।
रमजान की पहली और आखिरी तारीख चांद्रमान इस्लामी कैलेंडर द्वारा निर्धारित की जाती है।
रमजान का क्या अर्थ है?
पहली ईद जो अब जल्दी ही आने वाली है, वह रमज़ान के तीस रोज़े मोकम्मल होने की खुशी में मनाई जाती है। रमज़ान रम्ज शब्द से बना है। अरबी में इसका मतलब होता है, जलना। मुमकिन है कि इसका नाम रमज़ान इसलिए रखा गया होगा क्योंकि अरब में तेज धूप होती है, रोज़े इंसान को अंदर तक तपा देते हैं और कहते हैं रमज़ान में हमारे अंदर के गुनाह जल जाते हैं।
*रमज़ान का माह की विशेषताएँ*
महीने भर के रोज़े (उपवास) रखना
रात में तरावीह की नमाज़ पढना
कुरान तिलावत (पारायण) करना
एतेकाफ़ बैठना, यानी गाँव और लोगों की अभ्युन्नती व कल्याण के लिये अल्लाह से दुआ (प्रार्थना) करते हुवे मौन व्रत रखना
ज़कात देना
दान करना
अल्लाह का धन्यवाद अदा करना। अल्लाह का धन्यवाद अदा करते हुवे इस महीने के गुजरने के बाद शव्वाल (इस्लामी पंचांग का दसवां महीना) की पहली तिथि को ईद उल-फ़ित्र मनाते हैं।
इत्यादी को प्रमुख माना जाता है। कुल मिलाकार पुण्य कार्य करने को प्राधान्यता दी जाती है। इसी लिये इस माह को नेकियों और इबादतों का महीना यानी पुण्य और उपासना का माह माना जाता है।
मुसलमानों के विश्वास के अनुसार इस महीने की २७वीं रात शब-ए-क़द्र को कुरान का नुज़ूल (अवतरण) हुआ। इसी लिये, इस महीने में क़ुरान को अधिक पढ़ना पुण्यकार्य माना जाता है। तरावीह की नमाज़ में महीना भर कुरान का पठन किया जाता है। जिस से कुरान पढ़ना न आने वालों को कुरान सुनने का अवसर अवश्य मिलता है।
रमज़ान और उपवास (रोज़ा)संपादित करें
रमजान का महीना कभी 29 दिन का तो कभी 30 दिन का होता है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग उपवास रखते हैं। उपवास को अरबी में “सौम” कहा जाता है, इसलिए इस मास को अरबी में माह-ए-सियाम भी कहते हैं। फ़ारसी में उपवास को रोज़ा कहते हैं।
भारत के मुसलिम समुदाय पर फ़ारसी प्रभाव ज़्यादा होने के कारण उपवास को फ़ारसी शब्द ही उपयोग किया जाता है।
हालाँकि किसी भी पवित्र धर्मग्रंथ में उपवास का कोई प्रमाण नहीं है। तथा अल्लाह कबीर वह सर्वशक्तिमान ईश्वर हैं जो पैगंबर मुहम्मद को मिले और उन्हें जन्नत दिखाई।
उपवास के दिन सूर्योदय से पहले कुछ खालेते हैं जिसे सहरी कहते हैं। दिन भर न कुछ खाते हैं न पीते हैं। शाम को सूर्यास्तमय के बाद रोज़ा खोल कर खाते हैं जिसे इफ़्तारी कहते हैं।
लेखक
मिन्नत गोरखपुरी
(युवा कवि/शायर/मंच-संचालक/ साहित्यकार/लेखक/समाजसेवी) गोरखपुर,उत्तर प्रदेश
संपर्क सूत्र-8299733818