मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण : आचार्य अभयनंदन
कोतवाली फरेंदा क्षेत्र के डंडवार खुर्द में आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन की कथा सुनाते हुए आचार्य पंडित अभय नंदन त्रिपाठी ने कथा सुनाते हुए कहा कि भगवान की भक्ति में शरीर का नहीं बल्कि उसमें रहने वाले मन का है। मन के द्वारा किए गए कार्य का परिणाम ही जीव को भोगना पड़ता है। मन के सासांरिक भोग विलास में लग जाने से पुनर्जन्म लेना पड़ता है। महाराज भरथ का मन मृग में लग जाने के कारण उन्हें मृग के रुप में जन्म लेना पड़ा। उसके बाद मृग ने मरते समय राजर्षि भरत का ध्यान किया। अगले जन्म में सिंधू सौवीर के राजा रहुगण के रुप में हुआ। इसी लिए कहा कि मनुष्य के बंधन और का कारण मन ही है। इस दौरान अर्जुन प्रसाद मिश्र, शारदा प्रसाद त्रिपाठी, राजेश द्विवेदी, शिवाकांत त्रिपाठी, राघवराम मिश्र, आशा देवी, नीलम मिश्र, राजकिशोर पाण्डेय, गंगा, सरिता, राधारमण मिश्र, अन्नपूर्णा, मौजूद रहे।
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