*बेमतलब साबित हो रही संविधान में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण की व्यवस्था
लोकतंत्र में ग्राम पंचायत विकास की पहली सीढ़ी है। 73वें संविधान संशोधन के बाद पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के कम से कम एक-तिहाई स्थान स्त्रियों के लिए आरक्षित करने की व्यवस्था है ।
तैतीस प्रतिशत आरक्षण मिलने के बाद पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। सरकार और समाज भले ही महिला सशक्तिकरण पर जोर दे रहा हो, परन्तु महिला प्रधान घूंघट की ओट से बाहर नहीं निकल रही हैं।इनके पति, पुत्र, जेठ, देवर, ससुर व अन्य परिजन इन्हें घर की चहरदीवारी में रखकर खुद प्रधानी चला रहे हैं। यही लोग बैठकों व विकास कार्य आदि की कमान संभाले रहते हैं
कई महिला प्रधान तो ऐसी हैं, जो सिर्फ बैंक शाखा में आकर रुपए ही निकालती हैं या महत्वपूर्ण कागजों पर साइन करती हैं। हैरत की बात यह है कि प्रतिदिन दर्जनों की संख्या में प्रधान द्वारा प्रमाणित किए जाने वाले प्रपत्र पर प्रतिनिधि विधि विरुद्ध तरीके से हस्ताक्षर करते रहते हैं। सरकारी धन से हुए कार्य पर अधिकांश जगह प्रधान के साथ पति का नाम लिखा गया है।
विभागीय बैठकों तक में यही लोग पहुंच रहे हैं। गांव के सचिव और सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) भी प्रतिनिधियों की सलाह पर कार्य संपादित करते हैं। अधिकारियों की शिथिलता के चलते महिला सशक्तिकरण पर सवाल खड़ा हो रहा है।ऐसे में लोगों को अपनी समस्या का समाधान कराने के लिए ग्राम प्रधान की जगह उसके पति का चक्कर काटना पड़ता है ।
इस संबंध में बीडीओ खुनियांव आर के शुक्ल ने कहा कि क्षेत्र पंचायत की बैठक में प्रधान तथा बीडीसी को ही बुलाया जाता है।
रिपोर्ट- मोहम्द अयूब बांसी सिद्धार्थनगर